ब्रह्मदेव मिश्र।
धर्म और धर्मनिरपेक्षता
मनुस्मृति के अनुसार धर्म के निम्न लिखित 10 नियम हैं जिनको धारण करने वाला ही धार्मिक कहलाने का अधिकारी होता है।
1.धृति(धारण करना), 2. क्षमा
3. दम(अधर्म को रोकना),
4. अस्तेय5. शौच(स्वच्छता)
6. इंद्रिय निग्रह (अधर्म में लिप्त न रहना)7. धीह(व्यसनों से दूर रहना)8. विद्या9. सत्य
10. अक्रोध।
यहां तक कि मंदिर में घंटा बजाना या पूजा करना धर्म नहीं बल्कि कर्मकांड है।
चाणक्य के अनुसार धर्मस्य अर्थम मूलम्।अर्थात धर्म के मूल में अर्थ है। अर्थव्यवस्था ही किसी धर्म के मजबूती का आधार होता है।इतिहास गवाह है कि अंग्रेजों का लक्ष्य संपूर्ण भारत को ईसाई बनाना था।23 जून 1813 में हाउस आफ कॉमनस के संसद में भारत को ईसाई करण के लिए प्रस्तावित किया गया था।इस विषय पर अंग्रेजी संसद में 13 साल बहस चली।
लगभग 40 साल पहले इस्लामिक देश आर्थिक रूप से मजबूत होने लगे और स्पष्ट था कि अलजवाहिरी जैसे कट्टरपंथी अमेरिका जैसे महाशक्ति को आंखें दिखाने लगे।आबू धाबी जैसे संपन्न इस्लामिक जगह पर उनके अजान के समय सभी धर्म के लोगों को अपना शटर गिरा देना पड़ता है।उनकी आर्थिक संपन्नता ही लोगों को ऐसा करने को मजबूर करती है।
अपने देश की अर्थव्यवस्था अब तक कर्ज पर आधारित थी।विश्व बैंक कर्ज ना दे तो बजट ही नहीं बनता।
प्लूटो की प्रसिद्ध पुस्तक रिपब्लिक के अनुसार"RELIGION IS LAW" अर्थात धर्म ही नियम है।चाणक्य के अनुसार धर्मनिरपेक्ष कमजोर लोगों का शब्द है।
धर्म और धर्मनिरपेक्षताष