कोरोना वैश्विक सकंट के बन्दी की मार, आर्थिक त्रासदी के दौर में रामनगरी का जनजीवन
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- May 04, 2020
कलिकाल का ही प्रभाव ही है जो हमारे जनेता भगवान का दर्शन भी दुर्लभ हो गया है: संत
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नन्द मोहन. (एन. के)
अयोध्या। कोरोना वैश्विक सकंट के वैश्विक बन्दी की मार से जहा दुनियां भर के लोगो की जन्दगी त्रासदी के दौर से गुजर
रही है, वही अब इसका असर मंदिरों पर भी पड़ी रही है। अयोध्या, मथुरा, काशी, चित्रकूट जैसे अनेक नगर जिनकी जीविका मन्दिरो व पर्यटन पर पूर्णतः आश्रित है। आज वहा वेवसी, निरासा, वेचैनी ने लाखों तड़पी जिंदिगी को अपने आगोश में ले रखा है। जिन नगरों में हर रोज उत्सव व खुशहाली का सवेरा ही पहचान रही है, उन नगरों की लॉक डाउन के कारण इस तरह की स्थिती कोरोना महामारी से उतपन्न आर्थिक त्रासदी का हल व्या कर रही है।
ज्ञातव्य हो की रामनगरी की लाइफ लाइन इस नगर की धार्मिक सनातन मान्यता ही है। साथ ही यहां के पौरणिक
मन्दिरो व पारम्परिक तीन मेलो के अवसर पर श्रद्धाउलुओ की भीड़ से ही यहां के लाखों लोगों की जीविका निर्भर है। नगर के प्रमुख मन्दिर रामजन्म भूमि, हनुमानगढ़ी, कनक भवन, नगेश्वरनाथ, क्षीरेश्वरनाथ मन्दिर जैसे अनेक मन्दिर जिसके आसपास सैकड़ों प्रसाद, फूल मले, चूड़ी खिलौने की दुकानों के सहित अनेक धर्मशाला, गेस्टहाउस, होटल, साधु संतों,पंडे, पूजारियो, गरीबो का बसेरा व व्यापर है। जिनका परिवारिक व्यवस्था एवं भरण पोषण मंदिरों के पर्यटन पर ही निर्भर है, परन्तु आज वैश्विक महामारी के लाक डाउन में महीनों से बन्द पड़े मन्दिरो के कारण इनका जीवन अस्त व्यस्त हो चुका है। दुकान में पड़े समान बर्बाद हो रहे हैं। साथ ही कच्चे सौदे लडू प्रशाद आदि फूल तो पूर्णतः खराब हो चुके हैं। इतना ही नही राम नगरी के आस पास के किसानों की भी फूल, सब्जी की खेती से लागत भी निकलना दूभर हो गया है। जिसका प्रमुख कारण मन्दिर न खुलने सहित पर्यटन का अभाव व लोगो की आमदनी में कमी है।
घरबार का त्यग कर भगवान के सेवा में समर्पित नगर के साधु सन्तो की भी स्थिती लम्बे लॉक डाउन के करण बेहद दयनीय स्थिती तरफ की अग्रशर है। क्योकि इन महात्माओ का तो जीवन केवल मन्दिर में श्रद्धालुओं के चढ़ावे पर ही निर्भर रहा है। भगवान भरोसे जीवन यापन करने वाले इस नगर के लोगो को, इस कोरोना से उतपन्न त्रसदी के माह संकट से कब छुटकारा मिलेगा यह सोचना भी अभी उचित नही लगता। मगर यह सोच कर जीने की कोसिस जरूर है कि जल्द जिंदगियां खुशहाल होगी।
परेशान साधु संत इस विषम परिस्थिति के विषय मे बताते हैं कि आज से पहले कभी भी ऐसा न ही देखा था न ही कभी अपने दादा गुरूओं से भी सुना था। बहुत भयंकर बीमारियों के खीसें सुने थे मगर भगवान के मंदिर बन्द होना दर्शन दुर्लभ होना यह कभी न सुना था। सन्त कहते हैं कि यह तो कलिकाल का ही प्रभाव है जो आज हमारे जनेता भगवान का दर्शन भी दुर्लभ हो गया है। वही नगर के फूल, माला, प्रसाद बेचने वालों का कहना है कि इस कोरोना विमारी के संकट से हो सकता है कि छुटकारा कुछ दिनों में मिल जाय। मगर इस महामारी के आर्थिक नुकसान की भरपाई हों पाना आसान नही होगा। लोग आगे बताते है कि चैत राम नवमी मेला पर लॉक डाउन के कारण रोक लग गया। जो बड़े आर्थिक सकंट की तरफ ले जाने वाला साबित हुआ है। क्योंकि व्यपारियो का मेला न होने के कारण पूजी तक दुब गई है। अब चौपट हो चुके व्यापर के लिए दुबारा पूजि निर्माण करने में वर्षो का समय भी कम पड़ सकता है।
तिरुपति बालाजी मंदिर प्रशासन ने 1300 कर्मचारियों को नौकरी से निकाला
मन्दिरो की वर्तमान स्थिति का अंदाजा देश के सबसे धनी आंध्र प्रदेश के भगवान वेंकटेश्वर तिरुपति बालाजी मंदिर से हाल ही में 1300 कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिए जाने के न्यूज के प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ कर लगया जा सकता है। प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार भगवान वेंकटेश्वर के मंदिर का काम-काज संभालने वाले ट्रस्ट तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम बोर्ड ने उन सभी कर्मचारियों का कॉन्ट्रैक्ट बढ़ाया नहीं, जो कि 30 अप्रैल 2020 को खत्म हुआ ।हालांकि, मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष वाईवी सुब्बा रेड्डी ने मानवीय आधार पर इस मामले को अपने स्तर से देखने को लेकर आश्वासन दिया है।
मिली जानकारी के अनुसार लॉकडाउन के बाद टीटीडी बोर्ड ने 20 मार्च के बाद से तिरुमाला मंदिर में श्रद्धालुओं के आवागमन पर रोक लगा रखा है। इस प्रमुख मंदिर के अलावा 50 अन्य मंदिर भी इसके प्रशासन में आते हैं, जो फिलहाल बंद ही हैं। रोचक बात यह है कि 128 साल के मंदिर इतिहास में पहली बार श्रद्धालुओं के लिए बंद किया गया है।