बैक का कर्ज बना परेशानियों का पिटारा

 भारत आर्थिक त्रासदी व महामारी के घातक दो मुहाने पर खड़ा है। यह स्थिति पूर्णतः "एक तरफ कुआ तो दूसरी तरफ खाई" जैसा है।  देश दुनिया मे कोरोना सक्रमण हर रोज नया रिकॉर्ड वन रहा है। देश की बाजरे व दुकान सरकार से मिलने वाली सशर्त सहूलियत के वावजूद आधे से अधिक बन्द पड़े हैं। वही दूसरी तरफ वेरोजगार हुए कामगारों की भीड़ गांव में व छोटे कस्बो में इकठा होने लगी है। साथ ही मानव समाज का आधे से अधिक हिस्सा गरीबी, भुखमरी, निरक्षरता के मुहाने पर खड़ा है। वही दूसरी तरफ पर्यटन का हब मने जाने वाले, लाखो का पेट भरने वाले अयोध्या, माथुर, काशी जैसे नगरों की माली दशा बाद से भी बतर हो रही है। गरीबो की मदद करने वाले भी अब आर्थिक तंगी के सीकर होने लगे हैं। बन्द पड़े मंदिरों के कपाट अयोध्या में रहने वाले सामान्य परिवार को भी गरीबी के दलदल में धकेलने वाल बन चुका है। सभी लोग इसी सोच में डूबे है आगे क्या होगा। वही दूसरी तरफ बैंक से छोटे कर्ज लेने वाले 70 फीसद सामान्य परिवार के लोग सरकार से विशेष छूट की उम्मीद लगाये है। क्योंकि काम धंधे बन्द होने के कारण कर्ज की क़िस्त जमा करना कठिन हो रहा है। हालांकि सरकार ने बैक से लॉक डाउन के तीन महीने तक क़िस्त न जमा करने कि छूट पहले से दिलवा रखा है फिर भी लोगो को इसकी चिंता लगी है की आखिर तीन माह बाद तो कर्ज जमा ही करना है। पर्यटन के अभाव में बन्द पड़े व्यापार के करण बैक का क़िस्त अब कैसे जमा होगी। अगर सरकार देश के पर्यटन को खोलने का फैसला जल्द नही लेती है, तो अयोध्या जैसे तमाम नगरो में लोग भुखमरी के मुहाने पर होंगे।
भारत की अर्थ व्यवस्था है ग्रमीण
  देश के बड़े शहरो से लौट रहे बेरोजगार श्रमिक को आगे कैसे काम मिलेगा, जब देश मे आधे से अधिक युवा पहले से वेरोजगार है। भारत की अर्थव्यवस्था 54 फीसदी पहले से कृषि पर निर्भर है बाकी के बचे हिस्से का लगभग 24 फीसदी हिस्सा कृषि से जुड़े व्यापार ही निर्भर ऐसे में मने तो लगभ 78 फीसदी देश की आबादी ग्रमीण अचल पर ही आश्रित है। ऐसे में ग्रामीण अंचल की कमोजर होती अर्थव्यवस्था देश मे कोरोना महामारी की जंग को कमजोर बना सकता है। इसपर अगर वड़े बुजुर्ग व एक्सपर्टों की माने तो जब कोई बड़ी महामारी का प्रकोप आता है तो आर्थिक संकट तो भविष्य में उतपन्न होता ही है, ऐसे में सरकार व आम जन दोनों की यह जरूरत होती है की धर्य बनाये रखे। साथ ही आज कोरोना में लौट रहे भारी सख्य में श्रमिको  के कारण बड़े नगरों की अपेक्षा छोटे नगर, गांव, कस्बो में लोगो की आबादी अधिक हो चुकी है ऐसे में बड़े व्यापार की अपेक्षा कृषि, पशुपालन, छोटे व्यापार सहित लोगो सामान्य जरूरतों को प्रमुखता देते हुए सरकार को कदम उठाने की जरूरत है। अगर ऐसा नही होता है तो यह देश समाज के लिए परेशानी यह का सबब बन सकता है।
भारत एक धर्म प्रधान देश है ऐसे में धर्माचार्यो की राय भी अहम हो जाता है। धर्माचार्यो की माने तो महामारी के करण उतपन्न आर्थिक संकट भुखमरी, चोरी, अपराध, अराजकता को उतपन्न करने वाल होता है ऐसे में देश की वर्तमान सरकार को इन बातों को ध्यान में रखते हुए ठोस निर्णय लेने का वक्त है जिससे  समाज को अराजकता के दौर में जाने से बचाया जा सके। साथ ही छोटे नगर, गांव में जन जीवन को सामान्य बनाये रखने के लिए यह बहुत जरूरी है कि सामान्य वर्ग, व गरीबो को ध्यान में रखते हुए, ही इस कोरोना महामारी की जंग जारी रखा जाय, क्योकि लोगो की आर्थिक स्थिति इसी तरह खरब होती रही तो कोरोना का जग जितना मुश्किल ही नही नामुकिन हो जाएगा।