20 लाख करोड़ का पैकेट-"खुराक या इलाज"।

ब्रह्मदेव मिश्र।
  20 लाख करोड़ का पैकेट-"खुराक या इलाज"।
केंद्र सरकार द्वारा 20 लाख करोड़ की राहत पैकेज की घोषणा स्वागत योग्य है।जो एक बड़ी संख्या के रूप में सम्मोहित भी करती है।ज्ञात हो कि सरकार का जीडीपी लगभग 200 लाख करोड़ है।करोना संकट से पहले सरकार ने एक और पैकेज 30 लाख करोड़ का भी दिया था जो जीडीपी का लगभग 20 परसेंट था।तब विकास दर 6-7%था।आज 0% विकास दर में 20 लाख करोड़ जीडीपी का 10 पर्सेंट है जो स्वाभाविक रूप से अपर्याप्त है।किसी सरकार द्वारा दी गई सहायता राशि तीन तरह की होती है-
1. फिजिकल पैकेज-इसमें सरकार रियायत के तौर पर जनता द्वारा दिए टैक्स को वापस देती है या माफ करती है।
2. मॉनिटरी पैकेज-इसमें आरबीआई द्वारा बैंकों को कम ब्याज पर लोन बांटने को दिया जाता है।
3. फाइनेंसियल पैकेज-हाल में घोषित 20 लाख करोड़ फाइनेंसियल पैकेज का हिस्सा है।इसमें सरकार बैंकों को कम ब्याज पर लोन बांटने को कहती है।जो समय की रियायत तो देते हैं लेकिन बाद में कंपाउंडिंग ब्याज इकट्ठे वसूल करती हैं और पूरा पैकेज सिमटकर बैंकों पर आधारित हो जाता है।अब बैंक पर निर्भर करेगा कि वह अपनी शर्तों पर किसी को लोन देगा या नहीं।क्योंकि लोन वसूली की जिम्मेदारी बैंकों की ही होगी।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अभी कहा भी कि"लोन देकर समय की छूट तो देंगे लेकिन ब्याज इकट्ठे जोड़ कर देना होगा"।हम जानते हैं कि बैंक के काम छोटे जमाकर्ताओं पर चलते हैं जिन्हें महंगे ब्याज दर पर लोन मिलता है। अर्थव्यवस्था हमेशा भविष्य का शास्त्र होती है लाक डाउन के  दौरान आज हम शून्य परसेंट विकास दर पर खड़े हैं। फल स्वरूप जब जमाकर्ता की बचत का रिटर्न उसकी लागत से भी कम होगा तो कर्ज वसूली के समय बैंक और जमाकर्ता दोनों ही कराह रहे होंगे।
फरवरी 2020 में सामान्य परिस्थितियों में जो उद्योग कर्ज वसूली में राहत चाह रहे थे वह तुरंत बाद एक और नए लोन का बोझ कैसे सहन कर पाएंगे? ऐसी स्थिति में कोई व्यवसायी लोन लेना नहीं चाहेगा, साथ ही बेकारी, वेतन कटौती और नौकरी छूटने की समस्या में डूबा आदमी पर्सनल लोन भी लेना नहीं चाहेगा।क्योंकि दोनों के लिए कर्ज  चुकाना असंभव है।वर्तमान केंद्रीय मंत्री ने यह भी स्वीकारा कि"बैंक लोन दे रहे हैं लेकिन कोई लोन ले नहीं रहा है।"स्थिति यह है कि रिलायंस जैसी अच्छी साख वाली बड़ी कंपनी लोन लेने को तैयार नहीं है और अपनी इक्विटी तक बेचकर एक लाख 53 हजार करोड़ का कर्ज वापस कर रही है।वही छोटी साख वाली कंपनी तो इस मंदी में लोन लेने की स्थिति में ही नहीं है।प्रसिद्ध विद्वान एल टी निकोलस का कथन सही है कि"कर्ज से निकलने का रास्ता नया कर्ज नहीं है।"