पृथ्वी और प्रकृति संरक्षण से जुड़ा है मानव अस्तित्व

पृथ्वी और प्रकृति संरक्षण से जुड़ा है मानव अस्तित्व


पृथ्वी दिवस मनाने का सिर्फ एक ही उद्देश्य है, लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना, अर्थ डे के दिन तो हम संकल्प लेते हैं लेकिन अगले दिन ही भूल जाते हैं | जब पृथ्वी सुरक्षित होगी तभी मानव जीवन भी सुरक्षित होगा हमारे सौरमंडल में केवल धरती ही ऐसा ग्रह है, जहां जीवन है, जहां नदी, झरने, पहाड़, वन, अनेक जंतु प्रजातियां हैं और जहां हम सब मनुष्य भी हैं। लेकिन कही न कही इस मानव समाज की लालच और लापरवाही ने ना केवल दूसरी जीव प्रजातियों के लिए बल्कि खुद अपने लिए और संपूर्ण धरती के लिए संकट पैदा कर दिया है। धरती पर रहने वाले तमाम जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों को बचाने तथा दुनिया भर में पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लक्ष्य के तहत 1970 में 22 अप्रैल के दिन ‘पृथ्वी दिवस’ मनाने की शुरुआत हुई थी | आज लगभग पूरी दुनिया में प्रति वर्ष पृथ्वी दिवस के मौके पर धरती का पर्यावरण बनाए रखने और हर तरह के जीव-जंतुओं को उनके हिस्से का स्थान और अधिकार देने का संकल्प लिया जाता है| इसका मुख्य उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर लोगों को पर्यावरण संबंधित मुद्दों के लिए जागरूक करना है |
जल, जमीन और जंगल इन तीन तत्वों से पृथ्वी और प्रकृति का निर्माण होता है। यदि यह तत्व न हों तो पृथ्वी और प्रकृति इन तीन तत्वों के बिना अधूरी है। आधुनिकीकरण के इस दौर में जब इन संसाधनों का अंधाधुन्ध दोहन हो रहा है तो ये तत्व भी खतरे में पड़ गए हैं। जल के बिना जीवन की कल्पना भी मुश्किल है इसके बावजूद जल बेवजह बर्बाद किया जाता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जल-संकट का समाधान जल के संरक्षण से ही है। तीव्र गति से जनसंख्या में लगातार वृद्धि के साथ प्रत्येक व्यक्ति के लिए पेयजल की उपलब्धता सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। जमीन और जंगल के विषय में बात करे तो दुनिया में बढ़ती जनसंख्या और तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण जगल नष्ट हो रहे है उनके  काटने से कई प्रजाति के जीव-जंतु, प्राकृतिक स्रोत एवं वनस्पति विलुप्त हो रहे हैं, जिससे पृथ्वी असंतुलित हो रही है और पृथ्वी के तापमान का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है|
पृथ्वी के तापमान में वृद्धि और इसके कारण मौसम में होने वाले परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग है| ग्लोबल वार्मिंग धरती का सबसे बड़ा खतरा है। ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारको को समझना आवश्यक है | औद्योगीकरण के बाद कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन पिछले 15 सालों में  कई गुना बढ़ गया है। इन गैसों का उत्सर्जन आम प्रयोग के उपकरणों, फ्रिज, कंप्यूटर, स्कूटर, कार आदि से है। इस समय विश्व में प्रतिवर्ष 10 करोड़ टन से ज्यादा प्लास्टिक का उत्पादन हो रहा है जिसमें लगातार बढ़ोत्तरी हो  रही है। भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है। प्लास्टिक न केवल हमारे लिए बल्कि पूरे समुद्री और थलीय प्राणी भी इसके प्रभाव से अछूते नहीं रहे हैं। ग्रीन हाउस गैसें  भी अंततः ग्लोुबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार होती हैं। इनमें नाइट्रस आक्साइड, मीथेन, क्लोरो-फ्लोरो कार्बन, वाष्प, ओजोन शामिल हैं। मौसम चक्र में हो रहे लगातार बदलाव से पर्यावरण पर लगातार खतरा मंडरा रहा है पूरे विश्व में गर्मियां लंबी होती जा रही हैं, और सर्दियां छोटी यह परिवर्तन आने वाले समय में मानव जीवन के लिए घातक साबित हो सकता है |
वैज्ञानिकों और जानकारों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग को रोकने का कोई इलाज नहीं है। इसके बारे में सिर्फ जागरूकता फैलाकर ही इससे लड़ा जा सकता है। हमें अपनी पृथ्वी को सही मायनों में ‘ग्रीन’ बनाना होगा। अपने ‘कार्बन फुटप्रिंट्स’ (प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन को मापने का पैमाना) को कम करना होगा। हम अपने आस-पास के वातावरण को प्रदूषण से जितना मुक्त रखेंगे, इस पृथ्वी को बचाने में उतनी ही बड़ी भूमिका निभाएंगे।