बोले जस्टिस बीएस चौहान, महंगा होता जा रहा है न्याय पाना

गोरखपुर,  सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस डॉ. बीएस चौहान ने कहा कि संविधान ने न्याय पाने का अधिकार दिया है, लेकिन सस्ते में न्याय पाने की कोई व्यवस्था नहीं हो सकी है। धीरे-धीरे न्याय पाना महंगा होता जा रहा है। दिल्ली में वकीलों की फीस इतनी अधिक हो चुकी है कि बड़े-बड़े लोग उसे वहन नहीं कर सकते।


संविधान के गठन के विषय में विस्तार से दी जानकारी


जस्टिस चौहान शनिवार को दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के विधि संकाय की ओर से संवाद भवन में आयोजित विशेष व्याख्यान में छात्रों को संबोधित कर रहे थे। 'फ्रेमिंग ऑफ द कॉन्स्टिट्यूशन, द कॉन्स्टिट्यूशन एंड वे फॉरवर्ड (संविधान का गठन, संविधान एवं आगे की राह) विषय पर बोलते हुए जस्टिस चौहान ने संविधान के गठन के विषय में विस्तार से बताया। कहा कि संविधान के अधिकतर प्राविधान ब्रिटिश काल में बने हैं। उन्होंने सन् 1600 में ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना से लेकर उसके शासन के दौरान समय-समय पर बने कानूनों का विस्तार से जिक्र किया। समझाया कि एक कंपनी को राज्य का अधिग्रहण करने व फोर्स रखने का अधिकार कैसे मिला।


समाज में फैली सती प्रथा की कुरीति को समाप्त करने के लिए 1829 में बने रेगुलेशन का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस कानून का धर्म व संस्कृति के नाम पर बड़े पैमाने पर विरोध किया गया। समाज सुधारक राजा राममोहन राय ने अकेले इसका समर्थन किया था। इस रेगुलेशन को वापस लेने के लिए भारत से हजारों लोगों ने ब्रिटिश पार्लियामेंट के पास आपत्तियां भेजी थीं। राजा राममोहन राय ब्रिटेन गए और वहां के पार्लियामेंट के सदस्यों से मिलकर इस रेगुलेशन की महत्ता बताई। जिसके बाद ब्रिटिश पार्लियामेंट ने उसे वापस नहीं लिया। उन्होंने छात्रों से अपील की कि राजा राममोहन राय की तरह बनने की कोशिश करनी चाहिए।


 


छात्रों को राजा राममोहन राय की तरह बनना चाहिए  


विरोध का अधिकार है पर शांतिपूर्वक


जस्टिस चौहान ने कहा कि हमारे संविधान में 75 फीसद हिस्सा गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट 1935 से लिया गया है। शेष हिस्सा अलग-अलग देशों के संविधान से लिया गया है। उन्होंने कहा कि संविधान की उद्देशिका (प्रियंबल) को पढ़कर संविधान की मूल भावना को समझा जा सकता है। उन्होंने मूल अधिकारों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। कहा कि संविधान ने विरोध का अधिकार दिया है लेकिन यह शांतिपूर्ण तरीके से धरना देने के संबंध में है। विरोध हिसंक नहीं होना चाहिए। समान नागरिक संहिता की बात करते हुए कहा कि भारत की विविधता को देखकर यह आसान नहीं लगता। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. वीके सिंह ने कहा कि न्यायपालिका पर सभी का विश्वास है। समन्वयक विधि संकाय के अधिष्ठाता प्रो. जितेंद्र मिश्र ने मुख्य अतिथि का परिचय कराया। संचालन डॉ. टीएन मिश्र ने किया। प्रो. अहमद नसीम ने आभार जताया।


आरटीआइ को बना लिया पेशा


सूचना का अधिकार (आरटीआइ) का जिक्र करते हुए जस्टिस चौहान ने कहा कि यह महत्वपूर्ण अधिकार है लेकिन कई लोग दुरुपयोग करने लगे हैं। इसे पेशा बना लिया है। अब सवाल उठ रहा है कि क्या हर आदमी सूचना पाने के लिए उपयुक्त है? इस पर विचार किया जा रहा है कि किसे सूचना मिलनी चाहिए, किसे नहीं?


सीएए लागू करने से पहले होनी चाहिए थी बहस


जस्टिस बीएस चौहान ने कहा कि संविधान संशोधन से पहले इसके प्राविधानों को लेकर बहस होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि विधि आयोग में रहते हुए तीन तलाक के मुद्दे पर बड़े पैमाने पर बहस कराई थी। नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) सही है या गलत, इसपर चर्चा नहीं करनी लेकिन इसे लागू करने से पहले बहस होती तो बेहतर होता।


रामदेव के धरने में लाठीचार्ज का लिया था स्वत: संज्ञान


चार जून 2011 को दिल्ली में बाबा रामदेव के नेतृत्व में शांतिपूर्ण धरने के बाद सो रहे लोगों पर हुए लाठीचार्ज का जस्टिस बीएस चौहान ने स्वत: संज्ञान लिया था। उन्होंने बताया कि कोर्ट जाते समय टीवी पर पुलिस को सोते हुए लोगों पर लाठी बरसाते हुए देखा और जवाब-तलब किया। सोते हुए लोगों से क्या खतरा हो सकता है। इस मामले में लाठी चार्ज करके सोने के अधिकार का हनन भी किया गया था।